पंजाब सरकार शायद यह भूल गई कि नशे रोकने के नाम पर सारी सरकारी मेहनत भी हो रही है और नशों के नाम पर सभी राजनीतिक पार्टियों की दुकानें भी चल रही हैं, पर ऐसे वातावरण में नशा मुक्त क्या बनाएगी पंजाब सरकार पंजाब को जब शराब को नशा ही नहीं मानती और अब तो लगभग एक हजार करोड़ रुपये का लाभ कमाने के लिए शराब की सत्तर दुकानें खोलने का फैसला कर लिया है उन तथाकथित इज्जत वालों की सुविधा के लिए जो ठेके पर शराब खरीदने नहीं जा सकते, पर पीते खूब हैं। पंजाब सरकार यह घोषणा कर दे कि शराब की कमाई के बिना सरकार नहीं चल सकती और यह भी बता दे कि मणिपुर, बिहार, गुजरात आदि चार प्रांतों की सरकारें बिना शराब की कमाई के कैसे राज्य को चला रही हैं। अगर सरकार शराब की कमाई के बिना बेहद बेताब है तो फिर सरकार यह घोषणा कर दे कि मिड—डे—मील में भी शराब पिलाई जाएगी। स्कूलों—कालेजों की कैंटीनों पर भी शराब रखी जाएगी। हर मैरिज पैलेस में, समारोह में शराब पिलाना जरूरी होगा तभी मैरिज पैलेसों को लाइसेंस दिया जाएगा और अगर केवल पैसा कमाना ही सरकार का लक्ष्य है तो अच्छा रहे कुछ वैसे धंधे भी शुरू करवा दे जो नैतिकता की हद से नीचे है। अच्छा तो यह रहेगा कि सरकार मुफ्तखोरी बंद करे। बसों में बहुत थोड़ा किराया लगा दे, किराया सबको देना पड़े और बिजली की दरें भी इतनी कम कर दे कि सभी लोग आराम से बिजली का बिल भरें तथा सरकारी खजाने में धन जमा हो। याद रखिए शराब बेचकर जितना कमाते हो, उससे ज्यादा शराब पीड़ित परिवारों की देखभाल में खर्च करना पड़ता है। परिवार टूट रहे हैं, एक्सीडेंट में मौत हो रही है तथा शराबी अपराध करते हैं। इन सबसे बहुत बचाव हो जाएगा, अगर सरकार पर नियंत्रण करो अन्यथा यह क्यों लिखकर लगाया है कि शराब पीकर गाड़ी चलाओगे तो दस हजार रुपये जुर्माना होगा और शराब सार्वजनिक स्थानों पर न पिएं। खुली छूट दे दो, खजाना भरता जाएगा, अपराध बढ़ता जाएगा।
लक्ष्मीकांता चावला