
तेरे सिवाय कुछ भी और आये नजर नहीं,
सबको पता है लेकिन उसको खबर नहीं।
सोचा तो है कि चांद पर जाऊंगा एक रोज़,
अब किसी और तरफ़ भी जाती नजर नहीं।
समझा रहा हूँ झगड़े में न डाल यूँ ही जिंदगी,
उस पर किसी भी बात का होता असर नहीं।
जीना है किस तरह से सीख ले लो गुलाब से
खिलता है मुस्कुराकर वह कांटों का डर नहीं
चिड़ियों ने छुपके घोंसले बनाये हैं घर मेरे,
पत्थर के शहर में कोई मिलता शज़र नहीं।
फूलों को तोड़ डाला ख़ुदगर्ज़ व्यापार के लिए
महकती फ़िज़ा से अब कभी होती सहर नहीं
आबोहवा भी इस कदर बदली हुई सी है,
परिंदों को भी अब पसंद आता शहर नहीं।
तेरे दर पर आ गया हूँ मेरे मौला तू ले सँभाल,
तेरे सिवाय कोई और अब आता नजर नहीं
कमल
जालंधर
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