कोमलता

उपहारों से भरी प्रकृति से
कोई सा भी ले लो उपहार
संचित करने से घटता है
बढ़े बांटने से यह प्यार।

उपहारों से भरी प्रकृति से
कोई सा भी ले लो उपहार
संचित करने से घटता है
बढ़े बांटने से यह प्यार।
फूलों से कोमलता ले लो
झरनों से शीतलता ले लो
सत्य अहिंसा दया भावना
चहुदिश बिखरे जो भी ले लो।
आधी सच्ची आधी झूठी
आधे हंसमुख आधे रूठे
कृष्ण सरीखा प्रेम सीख लो
कोई तुमसे कभी ना रूठे।
प्रेम के गीत सिखाती गंगा
मन सबका हर्षाती गंगा
निर्मल अविरल बहती जाए
जीवन पथ दर्शाती गंगा।
कमल
जालंधर
Add Comment